आगरा। प्रदेश के सबसे व्यस्त मार्गों में से एक आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे पर रफ्तार से ज्यादा अब ‘नींद’ मौत बन रही है। सुप्रीम कोर्ट रोड सेफ्टी कमेटी की 24 अक्टूबर 2025 को हुई बैठक में खुलासा हुआ कि जनवरी 2021 से सितंबर 2025 तक यानी 57 महीनों में इस 302 किलोमीटर लंबे एक्सप्रेसवे पर 7024 सड़क हादसे हुए, जिनमें से 3843 केवल चालक की झपकी या नींद के कारण हुए यानी कुल हादसों का 54.71 प्रतिशत है।
यह चौंकाने वाला आंकड़ा सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता केसी. जैन द्वारा प्रस्तुत सड़क सुरक्षा रिपोर्ट में सामने आया, जिस पर कमेटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति अभय मनोहर सपरे की अध्यक्षता में गहन चर्चा हुई। बैठक में विशेषज्ञों ने माना कि चालक की थकान, जनसुविधाओं की कमी और ओवरस्पीडिंग मिलकर एक्सप्रेसवे को मौत का कॉरिडोर बना रहे हैं
जनवरी 2021 से सितंबर 2025 तक यानी 57 महीनों में कुल 7024 सड़क हादसे हुए, जिनमें से 3843 दुर्घटनाएं केवल चालक की नींद या झपकी लगने के कारण हुईं। यह कुल हादसों का 54.71 प्रतिशत है। इस चौंकाने वाले तथ्य का खुलासा सुप्रीम कोर्ट रोड सेफ्टी कमेटी की बैठक में हुआ। बैठक में उत्तर प्रदेश एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण (यूपीईडा) ने एक्सप्रेसवे पर हुई दुर्घटनाओं से जुड़े आंकड़े प्रस्तुत किए। इन आंकड़ों के अनुसार 690 हादसे ओवरस्पीडिंग के कारण, 626 टायर फटने से, 249 जानवरों के कारण और 1616 अन्य कारणों से हुए। कुल मिलाकर हादसों के कारणों में झपकी सबसे बड़ा कारण साबित हुई।
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| केसी जैन, वरिष्ठ अधिवक्ता सुप्रीम कोर्ट |
यूपीईडा द्वारा प्रस्तुत ट्रैफिक रिपोर्ट में बताया गया कि जनवरी 2020 में जहां 5 लाख 45 हजार 764 वाहन एक्सप्रेसवे से गुजरे थे, वहीं जनवरी 2025 में यह संख्या बढ़कर 11 लाख 16 हजार 390 तक पहुंच गई। यानी पांच वर्षों में एक्सप्रेसवे पर वाहनों का दबाव लगभग दोगुना हो गया है। प्रतिदिन औसतन 36 हजार से अधिक वाहन आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे से गुजरते हैं।
वाहनों में सबसे अधिक कारें शामिल हैं। जनवरी 2025 में एक्सप्रेसवे से गुजरने वाले कुल वाहनों में से 64.29 प्रतिशत कारें थीं। इस कारण 2021 से सितंबर 2025 तक हुई 7024 दुर्घटनाओं में से 3881 हादसे कारों से संबंधित रहे, जिनमें 4264 लोग घायल और 369 की मौत हो गई। विशेषज्ञों ने कहा कि यह आंकड़ा कार चालकों के लिए चेतावनी है कि वे लंबी दूरी की यात्रा के दौरान झपकी और थकान से सावधान रहें।
दोपहिया वाहनों के आंकड़े भी चिंता बढ़ाने वाले हैं। जनवरी 2020 में 31,361 दोपहिया वाहन एक्सप्रेसवे से गुजरे थे जो जनवरी 2025 में बढ़कर 40,667 हो गए। यानी लगभग 30 प्रतिशत वृद्धि दर्ज हुई। बैठक में यह भी माना गया कि ट्रैफिक नियमों की सबसे अधिक अवहेलना दोपहिया चालकों द्वारा की जाती है। तीन सवारियों का चलना और बिना हेलमेट के यात्रा आम बात है। जनवरी 2021 से सितंबर 2025 तक दोपहिया वाहनों के 769 हादसों में 1053 लोग घायल और 133 की मौत हुई। इस पर सवाल उठा कि जब एक्सप्रेसवे पर गति सीमा 120 किलोमीटर प्रति घंटा है तो क्या दोपहिया वाहनों को इस मार्ग पर चलने की अनुमति होनी चाहिए। केन्द्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय के नियमों के अनुसार एक्सेस कंट्रोल्ड एक्सप्रेसवे पर दो व तीन पहिया वाहनों, साइकिलों और पशु-चलित गाड़ियों का प्रवेश निषिद्ध है।
बैठक में एक और गंभीर मुद्दा सामने आया जनसुविधाओं की कमी। आगरा से लखनऊ दिशा में केवल दो स्थानों (105 और 227 किलोमीटर पर) और लखनऊ से आगरा दिशा में भी दो स्थानों (217 और 101 किलोमीटर पर) पर ही जनसुविधाएं उपलब्ध हैं। यह यात्रियों के लिए अत्यंत अपर्याप्त है। इंडियन रोड कांग्रेस (आईआरसी) के 11 फरवरी 2021 के मानकों के अनुसार ऐसी सुविधाएं हर 40 से 60 किलोमीटर पर और 30 जुलाई 2025 के संशोधित प्रारूप के अनुसार हर 30 से 40 किलोमीटर पर होनी चाहिए। यूपीईडा ने बताया कि नई सुविधाएं 160 और 165 किलोमीटर माइलस्टोन पर प्रस्तावित हैं जिन्हें शीघ्र लागू किया जाएगा।
अधिवक्ता केसी. जैन ने कहा कि हर दिशा में कम से कम पांच जनसुविधा स्थल आवश्यक हैं ताकि चालक लंबी दूरी की यात्रा के दौरान थकान मिटाने के लिए रुक सकें। उन्होंने कहा कि झपकी या नींद के कारण होने वाली दुर्घटनाओं को रोकने के लिए विश्राम स्थलों की संख्या बढ़ाना जरूरी है।
बैठक में सर्दियों के मौसम में गति सीमा घटाने की सिफारिश भी की गई। अधिवक्ता जैन ने कहा कि आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे राष्ट्रीय महत्व का कॉरिडोर है और इसे पूर्णतः सुरक्षित बनाना प्राथमिकता होनी चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि कोहरे के मौसम में कारों की गति सीमा 120 से घटाकर 75 किलोमीटर प्रति घंटा कर दी जाए, जैसा कि यमुना एक्सप्रेसवे पर लागू है। उन्होंने कहा कि संवेदनशीलता और पारदर्शिता के साथ काम किया जाए तो आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे को हादसामुक्त बनाया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट रोड सेफ्टी कमेटी की बैठक में यह भी सुझाव दिया गया कि एक्सप्रेसवे पर सेफ्टी ऑडिट को हर वर्ष अनिवार्य किया जाए, सड़क के किनारे रिफ्लेक्टर और लाइटिंग की व्यवस्था बढ़ाई जाए और हर 25 किलोमीटर पर एम्बुलेंस और पेट्रोलिंग वाहन तैनात हों ताकि दुर्घटना के तुरंत बाद सहायता मिल सके।
हादसों के मुख्य कारण
यूपीईडा (UPEIDA) द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार
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झपकी या नींद से हादसे: 3843 (54.71%)
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ओवरस्पीडिंग: 690 (9.82%)
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टायर फटने से: 626 (8.91%)
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जानवरों के कारण: 249 (3.54%)
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अन्य कारण: 1616 (23%)
जनवरी 2021 से सितंबर 2025 तक हुए 7024 हादसों में 3843 झपकी से, 690 ओवरस्पीडिंग से, 626 टायर फटने से, 249 जानवरों से और 1616 अन्य कारणों से हुए। यह आंकड़े साफ बताते हैं कि चालक की थकान और नींद हादसों का सबसे बड़ा कारण बन चुकी है। विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक एक्सप्रेसवे पर पर्याप्त विश्राम स्थल, नियंत्रण केंद्र और चालक निगरानी प्रणाली नहीं विकसित की जाती, तब तक हादसों की रफ्तार थमना मुश्किल है।
अधिवक्ता के.सी. जैन ने कहा कि आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे पर पांच वर्षों में ट्रैफिक दोगुना हो गया है, ऐसे में सुरक्षा उपायों को भी उसी गति से बढ़ाना होगा। उन्होंने कहा कि हर 30 से 40 किलोमीटर पर रेस्ट पॉइंट, पेट्रोलिंग और स्मार्ट मॉनिटरिंग सिस्टम लगाकर हजारों जिंदगियां बचाई जा सकती हैं। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि ड्राइवरों को झपकी रोकने वाली तकनीक (ड्राइवर अलर्ट सिस्टम) और वाहन में नींद सेंसर जैसी व्यवस्था अनिवार्य की जानी चाहिए।
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