India’s Justice Revolution News: अब जरूरत नहीं: तारीख पे तारीख! रोबो डॉक्टर के बाद रोबोट जज ?? न्याय की लाश को AI से सांस 50 मिलियन मुकदमों से भारत को बचाएगी मशीन!

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बृज खंडेलवाल द्वारा

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एक अंधेरी कोठरी में उत्तर प्रदेश का राम सिंह नाम का बूढ़ा आसमान का रंग ही भूल चुका है। 1998 में गिरफ्तार हुआ, वो अपराध का दोषी भी नहीं साबित हुआ, मगर सत्ताईस साल से इंतज़ार कर रहा है। उस मुकदमे का जो कभी शुरू ही नहीं हुआ। उसी शहर में एक बलात्कार पीड़िता, जो हमले के वक्त चौदह साल की थी, अब बयालीस की हो चुकी है। उसकी फाइल पीले कागज़ों के ढेर में दफन है।Supreme Court AI tools SUPACE and SUVAS speeding up case management


 


ये कहानियाँ अपवाद नहीं, नियम हैं। पचास मिलियन मुकदमे अदालतों की साँसें रोक रहे हैं। न्याय का वादा इतना देर से आता है कि बेमानी हो जाता है। गवेल (जज का हथौड़ा) की आवाज़ अब धीमी नहीं, खामोश हो चुकी है। मगर इस कब्रिस्तान-ए-उम्मीद में एक चिंगारी जल रही है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जो कभी दूर का ख्वाब था। अब भारत की न्याय व्यवस्था को कगार से खींचने को तैयार है। ये मशीनों का इंसानों पर कब्ज़ा नहीं, बल्कि टेक्नोलॉजी का जजों को वो चीज़ लौटाना है जो खो गई: वक्त।

SUPACE and SUVAS – AI tools revolutionizing Indian legal process


आंकड़े चीख रहे हैं। पूरे देश में पचास मिलियन मुकदमे लटके हैं, ज़िला अदालतों में अकेले चवालीस मिलियन। दस साल से ज़्यादा पुराने एक लाख से ऊपर बलात्कार के केस। विचाराधीन कैदी, जिन्हें दोषी भी नहीं ठहराया गया, अक्सर सजा से ज़्यादा वक्त जेल में काटते हैं। अर्थव्यवस्था हर साल एक-दो लाख करोड़ रुपये खून की तरह बहा रही है। पच्चीस फीसदी जजों की कुर्सियाँ खाली पड़ी हैं, क्लर्क कागज़ों में डूबे हैं, वकील तारीख पर तारीख लेते हैं। संविधान का “शीघ्र न्याय” का हक आम आदमी के लिए क्रूर मज़ाक बन गया है।


कुछ लोग डरते हैं कि AI न्याय को कोड में बदल देगा, इंसानी रहम छीन लेगा। डर समझ में आता है, मगर पुराना हो चुका है। क्रांति शुरू हो चुकी है और नतीजे ज़बान बंद कर देते हैं। भारत में सुप्रीम कोर्ट का SUPACE हजारों जटिल फाइलें सेकंडों में निगल जाता है, पुराने फैसले निकालता है, केस की समरी तैयार करता है। वो काम जो क्लर्क को दिन भर लगता था। SUVAS दस भारतीय भाषाओं में फैसले अनुवाद करता है, कानूनी भाषा (jargon) की दीवार गिराता है। अदालत AI नाम का पायलट तीन हज़ार अदालतों में चला। बैकलॉग तीस फीसदी कम, केस हैंडलिंग पाँच गुना तेज़। ये प्रयोग नहीं, सबूत हैं कि टेक्नोलॉजी बड़े पैमाने पर काम करती है। और नतीजे चौंकाने वाले!


दुनिया देखो तो यकीन और पक्का होता है। एस्टोनिया सात हज़ार यूरो से कम के छोटे दावों को AI से निपटाता है, सटीकता लगभग सौ फीसदी, बैकलॉग लगभग खत्म। ब्राज़ील की AI-सहायता वाली अदालतों ने लटके केस आधे कर दिए। जज एक ही वक्त में दोगुने फैसले सुना रहे हैं। कोलंबिया में एल्गोरिदम रोज़ सैकड़ों साधारण दस्तावेज़ तैयार करते हैं, जज मुश्किल सवालों पर दिमाग लगाते हैं। ये देश परफेक्शन का इंतज़ार नहीं कर रहे; व्यावहारिक औज़ार चला रहे हैं जो न्याय की व्यवस्थाओं को तेज़ और निष्पक्ष बनाते हैं।


जादू बदलने में नहीं, सशक्त बनाने में है। AI अस्सी फीसदी बोरिंग काम सुलटा सकता है: नए केस तुरंत छाँटना, बच्चों से बलात्कार या ज़मानत जैसे ज़रूरी मामले फ्लैग करना, कानून और पुराने फैसले पलक झपकते निकालना, समन, ज़मानत आदेश, साधारण फैसले का पहला ड्राफ्ट तैयार करना। पायलट में वो ड्राफ्ट इंसानी तर्क से सत्तानवे फीसदी मेल खाते हैं, मगर जज हमेशा जाँचता और हस्ताक्षर करता है। रियल-टाइम ट्रांसक्रिप्शन और अनुवाद भाषा की दीवार तोड़ते हैं। तमिल बोलने वाला किसान अपनी ज़बान में सुनवाई समझता है। नतीजा? घरेलू हिंसा की पीड़िता पंद्रह साल की जगह नब्बे दिन में राहत पा सकती है, विचाराधीन कैदी सजा से ज़्यादा सड़ता नहीं।


ये संभावना बिखरे परीक्षणों से नहीं, राष्ट्रीय जंग से पूरी होगी। कल्पना करो AI-न्याय मिशन। तीन साल में पच्चीस मिलियन केस साफ करने का हौसला। सौ ज़िलों में एकीकृत AI-जस्टिस पोर्टल शुरू करो, हर साल दस लाख साधारण केस निपटाए। पचास मिलियन भारतीय फैसलों का डेटा फीड करो ताकि AI हमारे कानून, हमारी मिसालें, हमारी हकीकत समझे। दस हज़ार करोड़ लगाओ। वापसी दस गुना, अर्थव्यवस्था और भरोसे में। हर कदम पर इंसानी निगरानी अटल: जज आखिरी फैसला करेंगे, खासकर जटिल मामलों में। स्वतंत्र बोर्ड बायस जाँचेगा, पारदर्शिता रखेगा, डेटा कानून का पालन सुनिश्चित करेगा।


दाँव पर कुछ भी नहीं, सब कुछ है। तीस साल बाद आया न्याय देर से नहीं, बेमानी है। राम सिंह अपने खोए दशक वापस नहीं पा सकता। बलात्कार पीड़िता उस अदालत को नहीं भूल सकती जिसने उसे भुला दिया। मगर उनकी त्रासदी लाखों को बचा सकती है। तेज़, निष्पक्ष न्याय व्यवस्था विलासिता नहीं, विकसित भारत की बुनियाद है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस इंसानी हिकमत और अटूट नैतिकता के साथ ताकत बन सकती है।

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