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आगरा। भारतीय रेलवे ने आगरा मंडल के मथुरा–पलवल खंड पर स्वदेशी कवच प्रणाली का सफल परीक्षण किया। इस प्रणाली ने पीछे से टक्कर (Rear End Collision) और आमने-सामने टक्कर (Head-on Collision) दोनों स्थितियों में स्वतः ब्रेक लगाकर दुर्घटना को टाल दिया। कवच प्रणाली रेलवे सुरक्षा में एक नए युग की शुरुआत है, जिससे यात्रियों को सुरक्षित और भरोसेमंद यात्रा अनुभव मिलेगा। जानें कैसे भारतीय रेलवे भविष्य की सुरक्षा तकनीक में नया अध्याय लिख रहा है।
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रेलवे कवच सिस्टम का ट्रैक पर परीक्षण करते रेलवे अधिकारी |
कवच प्रणाली क्या है?
कवच भारतीय रेलवे द्वारा विकसित एक स्वदेशी ऑटोमेटिक ट्रेन प्रोटेक्शन (ATP) प्रणाली है। यह तकनीक ट्रेन की गति पर नियंत्रण रखती है और ऐसी परिस्थितियों में स्वतः ब्रेक लगा देती है जब चालक का ध्यान भटक जाए या सिग्नल का उल्लंघन हो। कवच का उद्देश्य ट्रेन टक्कर की संभावनाओं को समाप्त करना और सुरक्षित संचालन सुनिश्चित करना है।
मथुरा–पलवल खंड चुना गया परीक्षण के लिए
उत्तर मध्य रेलवे के आगरा मंडल के मथुरा–पलवल रेल खंड को इस परीक्षण के लिए चुना गया। यह खंड दिल्ली से जुड़ा महत्वपूर्ण मार्ग है और यहां यात्री तथा मालगाड़ियों की आवाजाही बहुत अधिक रहती है। ऐसे व्यस्त खंड पर कवच प्रणाली का परीक्षण होना अपने आप में एक बड़ी चुनौती थी, जिसे रेलवे ने सफलतापूर्वक पूरा किया।
किन इंजनों का हुआ उपयोग
इस परीक्षण के लिए दो विशेष इंजनों का चयन किया गया:
- 35023 WAP-5 (गाजियाबाद), जिसमें केरनक्स कवच तकनीक लगी थी।
- 30234 WAP-7 (तुगलकाबाद), जिसमें एचबीएल कवच प्रणाली स्थापित थी।
इन दोनों इंजनों का इस्तेमाल पीछे से टक्कर (Rear End Collision) और आमने-सामने की टक्कर (Head-on Collision) परीक्षण में किया गया।
रियर एंड कोलिजन परीक्षण
इस परीक्षण में लोको-1 को होम सिग्नल के आगे खड़ा किया गया। लोको-2 को ऑटो सिग्नल पर खड़ा करने के बाद उसमें सिग्नल ओवरराइड किया गया और उसे लोको-1 की दिशा में बढ़ाया गया। सामान्य स्थिति में यह प्रयोग खतरनाक साबित हो सकता था, लेकिन कवच प्रणाली की वजह से ऐसा नहीं हुआ।
जैसे ही लोको-2 निर्धारित दूरी पर पहुंचा, कवच ने स्वतः ब्रेक सक्रिय कर दिए। परिणामस्वरूप, लोको-2 लगभग 326 मीटर पहले ही रुक गया और टक्कर टल गई। यह रेलवे सुरक्षा के लिहाज से एक ऐतिहासिक पल था।
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मौके पर निरीक्षण कर सुरक्षा व्यवस्था का जायजा लेते रेलवे के अधिकारी |
दूसरा और अधिक चुनौतीपूर्ण प्रयोग आमने-सामने की टक्कर रोकने के लिए किया गया। इसमें लोको-1 को होम सिग्नल के आगे खड़ा किया गया और उसे विपरीत दिशा में चलाया गया। टैग रीडिंग के बाद जैसे ही दिशा स्थापित हुई, लोको रुक गया।
इसी बीच, लोको-2 ने एडवांस स्टार्टर को पार करके ब्लॉक खंड में प्रवेश किया और लोको-1 की ओर बढ़ने लगा। जैसे ही दोनों लोको एक-दूसरे के करीब आए, कवच प्रणाली सक्रिय हो गई और लोको-2 स्वतः ट्रिप मोड में चला गया। परिणामस्वरूप, यह लोको-1 से 5 किलोमीटर पहले ही रुक गया, जिससे हेड-ऑन कोलिजन पूरी तरह टल गया।इन परीक्षणों से यह साबित हुआ कि कवच प्रणाली न केवल सैद्धांतिक रूप से बल्कि व्यावहारिक स्तर पर भी पूरी तरह कारगर है। रेलवे सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि कवच का व्यापक उपयोग भविष्य में रेल दुर्घटनाओं को लगभग असंभव बना देगा।
यात्रियों की सुरक्षा में नया युग
रेलवे का कहना है कि इस प्रणाली के इस्तेमाल से यात्रियों को न सिर्फ़ सुरक्षित यात्रा का अनुभव मिलेगा बल्कि उन्हें यह भरोसा भी होगा कि उनकी जान की रक्षा के लिए आधुनिक तकनीक मौजूद है। कई बार छोटी सी मानवीय भूल भी बड़ी दुर्घटनाओं का कारण बन जाती है, लेकिन कवच प्रणाली ऐसी स्थितियों में स्वतः हस्तक्षेप करके ट्रेनों को रोक देगी।भारतीय रेल ने कवच प्रणाली को और विकसित करने तथा पूरे नेटवर्क में लागू करने की प्रतिबद्धता जताई है। शुरुआती चरण में इसे कुछ चुनिंदा मार्गों पर लागू किया जाएगा और धीरे-धीरे पूरे देश में इसका विस्तार होगा।
स्वदेशी तकनीक पर गर्व
कवच प्रणाली पूरी तरह स्वदेशी तकनीक पर आधारित है। इससे न केवल विदेशी तकनीक पर निर्भरता कम होगी बल्कि ‘मेक इन इंडिया’ पहल को भी बल मिलेगा। इस प्रणाली के विकास और कार्यान्वयन में भारतीय इंजीनियरों की दक्षता और वैज्ञानिकों की प्रतिभा झलकती है।
रेल सुरक्षा में ऐतिहासिक मोड़
विशेषज्ञों का मानना है कि भारतीय रेलवे इतिहास में यह एक महत्वपूर्ण मोड़ है। जिस तरह रेलवे ने इलेक्ट्रिफिकेशन और डिजिटल टिकटिंग की दिशा में क्रांति की थी, उसी तरह कवच प्रणाली रेल सुरक्षा के क्षेत्र में क्रांति साबित होगी।
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