आगरा। भारत निर्वाचन आयोग (ECI) ने देश की चुनावी व्यवस्था में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए एक बड़ा फैसला लिया है। आयोग ने 334 पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को अपनी सूची से हटा दिया है।
इन दलों पर आरोप था कि वे लंबे समय से चुनावी प्रक्रिया में भाग नहीं ले रहे थे और पंजीकृत पते पर उनका कोई अस्तित्व नहीं था। यह कार्रवाई भारतीय चुनावी इतिहास में एक अहम मील का पत्थर मानी जा रही है।इस निर्णय के बाद देश में पंजीकृत RUPPs की संख्या 2,854 से घटकर 2,520 रह गई है। वर्तमान में भारत में 6 राष्ट्रीय दल और 67 क्षेत्रीय दल सक्रिय हैं, जबकि बाकी पंजीकृत दलों की निगरानी जारी है।
आयोग के मुताबिक, कार्रवाई का मुख्य उद्देश्य चुनावी व्यवस्था को साफ-सुथरा बनाना और फर्जी या निष्क्रिय दलों को हटाना था।
जांच में पाया गया कि कई दल केवल कागजों में मौजूद थे और उनका न तो कोई सक्रिय राजनीतिक एजेंडा था और न ही जनता के बीच कोई गतिविधि।
मुख्य कारण
- लगातार 6 वर्षों तक कोई चुनाव न लड़ना — 2019 से अब तक विधानसभा या लोकसभा चुनाव में शून्य भागीदारी।
- पंजीकृत पते पर अस्तित्व न होना — आयोग की टीम जब स्थल सत्यापन के लिए पहुंची, तो पता या कार्यालय ही नहीं मिला।
- सूचना अद्यतन न करना — पंजीकरण के समय दिए गए नाम, पदाधिकारी, पते आदि में बदलाव की जानकारी आयोग को नहीं दी गई।
उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक गाज
इस कार्रवाई में उत्तर प्रदेश सबसे आगे रहा, जहां 115 राजनीतिक दल सूची से बाहर कर दिए गए।
इनमें आगरा की भारत कल्याण पार्टी, ब्रज विकास पार्टी और लोकतांत्रिक युवा शक्ति पार्टी शामिल हैं।
स्थानीय स्तर पर राजनीतिक हलकों में इन दलों के नाम भले कभी-कभार सुने जाते रहे हों, लेकिन हाल के वर्षों में कोई चुनावी उपस्थिति दर्ज नहीं की गई।
कानूनी प्रावधान और नियम
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29B और 29C के तहत राजनीतिक दलों को—
- पंजीकरण के समय अपने संगठन, नाम, पता और पदाधिकारियों की पूरी जानकारी देनी होती है।
- किसी भी बदलाव की सूचना तुरंत आयोग को देनी होती है।
- यदि कोई पार्टी लगातार 6 साल तक चुनाव नहीं लड़ती, तो उसका पंजीकरण रद्द किया जा सकता है।
इन 334 दलों के हटने के बाद वे आयकर अधिनियम 1961 के तहत मिलने वाली कर छूट, तथा चुनाव चिन्ह (आरक्षण एवं आवंटन) आदेश 1968 के तहत मिलने वाले आरक्षित चुनाव चिन्ह, आधिकारिक मान्यता और सरकारी सुविधाओं के अधिकार से वंचित हो गए हैं।
लाभ जो अब छिन गए
- आयकर छूट — अब दान और फंडिंग पर कर छूट नहीं मिलेगी।
- चुनाव चिन्ह — पूर्व में आरक्षित चिन्ह का इस्तेमाल करने का अधिकार खत्म।
- आधिकारिक मान्यता — किसी भी प्रकार की सरकारी या चुनाव आयोग की पहचान समाप्त।
- अन्य सुविधाएं — प्रचार सामग्री, नामांकन में विशेष सुविधाएं, और सरकारी सहायता समाप्त।
कार्रवाई की प्रक्रिया
जून 2025 में चुनाव आयोग ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों को 345 RUPPs का सत्यापन करने का आदेश दिया था।
जांच में 334 दलों को दोषी पाया गया।
इन दलों को पहले नोटिस जारी किए गए, लेकिन अधिकांश ने जवाब नहीं दिया या संतोषजनक प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर पाए।
30 दिन में अपील का अवसर
आयोग ने आदेश में कहा है कि कोई भी प्रभावित दल आदेश की तारीख से 30 दिनों के भीतर अपील कर सकता है।
इसके लिए उन्हें—
- अपने सक्रिय होने के सबूत
- चुनाव में भागीदारी के प्रमाण
- पंजीकृत पते की वास्तविक स्थिति का दस्तावेज
प्रस्तुत करना होगा। - नहीं लड़ते चुनाव, आयकर छूट पाने को अपनाते हैं
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम फर्जी और निष्क्रिय दलों के नेटवर्क को तोड़ने में निर्णायक साबित होगा।
अक्सर ऐसे दल चुनाव नहीं लड़ते, लेकिन पंजीकरण का इस्तेमाल आयकर छूट पाने, फंड जुटाने और चुनावी प्रक्रिया में भ्रम फैलाने के लिए करते हैं।
अब सक्रिय दलों के लिए माहौल साफ होगा और मतदाता को स्पष्ट विकल्प मिलेंगे।
लोकतंत्र के लिए सकारात्मक संकेत
यह फैसला चुनावी पारदर्शिता को मजबूत करेगा और राजनीतिक व्यवस्था को साफ करेगा।
मतदाताओं के लिए यह संदेश है कि चुनाव आयोग केवल कागजी नियम बनाने तक सीमित नहीं है, बल्कि उनके क्रियान्वयन में भी गंभीर है।
भविष्य में इस तरह की नियमित छंटनी से निष्क्रिय दलों के लिए व्यवस्था में जगह बनाना मुश्किल हो जाएगा।
आगे का रास्ता
- आयोग ने संकेत दिए हैं कि पंजीकरण और सत्यापन की प्रक्रिया और कड़ी होगी।
- सत्यापन की समयसीमा घटाकर 6 वर्षों के बजाय 3-4 वर्ष करने पर विचार हो सकता है।
- डिजिटल रजिस्ट्रेशन और लोकेशन वेरिफिकेशन को अनिवार्य किया जा सकता है।
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