हे राम, हे लक्ष्मण, हे सीता यह कहि कै दशरथ भए दिहाने ।
देह त्यागि सुरलोक सिधारे, जग जनक जननी सबिहिं बिसारे ॥
आगरा। प्रभु श्रीराम भ्राता लक्ष्मण और माता सीता के साथ चित्रकूट पहुंच चुके हैं। इस दौरान सुमंत अयोध्या लौटकर महाराज दशरथ को वनवास का पूरा समाचार सुनाते हैं। समाचार सुनने के कुछ समय बाद ही महाराज दशरथ देह त्याग देते हैं। उधर, भ्राता भरत को ननिहाल में ही पिता के देहावसान की सूचना मिलती है। सूचना पाकर भरत तुरंत अयोध्या लौट आते हैं।
अयोध्या पहुंचकर भरत महारानी कैकेयी को धिक्कारते हैं और दुख प्रकट करते हैं कि उन्होंने यह क्या कर दिया। इसके बाद भ्राता भरत प्रभु श्रीराम से मिलने चित्रकूट जाते हैं। चित्रकूट में चारों भाइयों का मिलन होता है। भरत द्वारा प्रभु राम, लक्ष्मण और माता सीता से अयोध्या लौटने की बार-बार प्रार्थना की जाती है, किंतु प्रभु राम वनवास की आज्ञा का पालन करने के कारण लौटने से इनकार कर देते हैं। इसी दौरान महाराज जनक भी चित्रकूट पहुंचकर प्रभु श्रीराम से मिलते हैं और उन्हें लौटाने का प्रयास करते हैं, लेकिन सफल नहीं हो पाते। अंततः प्रभु राम भरत को अपनी चरण पादुका सौंपकर अयोध्या का राज्य संभालने की आज्ञा देते हैं।
आगे की लीला में जयंत का काग रूप धारण करके आगमन होता है। माता सीता के चरणों में जयंत अपनी चोंच मारता है। यह दृश्य देखकर प्रभु श्रीराम को क्रोध आता है और वह जयंत को दंड देने का संकल्प करते हैं। रक्षा की गुहार करने पर भी श्रीराम दंड स्वरूप एक बाण से जयंत का एक नेत्र हरण कर लेते हैं।
इस अवसर पर रामलीला कमेटी के महामंत्री राजीव अग्रवाल, ताराचंद, संजय अग्रवाल, दिलीप अग्रवाल, राम अंशु शर्मा, अशोक गोयल, विकास अग्रवाल और राहुल गौतम मौजूद रहे। वहीं, कमेटी के मीडिया प्रभारी राहुल गौतम ने बताया कि आगामी 23 सितम्बर को रावण की बहन शूर्पणखा की नाक-कान काटने और खर-दूषण वध की लीला का मंचन किया जाएगा।