Agra News:Consider sleep and fatigue as the main cause of road accidents: Petition before the committee of Supreme Court

 नींद और थकान को मानें सड़क हादसों का प्रमुख कारण: सुप्रीम कोर्ट की समिति के समक्ष याचिका

वरिष्ठ अधिवक्ता केसी जैन ने मंत्रालय की रिपोर्ट में अलग से आंकड़े शामिल करने और चेतावनी उपायों की मांग की


आगरा।देशभर में लगातार बढ़ रहे सड़क हादसों के पीछे छिपे “नींद और थकान” जैसे कारणों को अब कानूनी और नीति-निर्धारण स्तर पर गंभीरता से उठाया जा रहा है। वरिष्ठ अधिवक्ता केसी जैन ने सुप्रीम कोर्ट की सड़क सुरक्षा समिति के समक्ष याचिका दाखिल कर केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय से नींद व थकान को सड़क दुर्घटनाओं के एक स्वतंत्र और मान्यता प्राप्त कारण के रूप में स्वीकार करने की मांग की है।

याचिका में कहा गया है कि राष्ट्रीय राजमार्गों, यमुना एक्सप्रेसवे और आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे जैसे तेज रफ्तार मार्गों पर सबसे अधिक हादसे इसी वजह से हो रहे हैं, लेकिन वर्ष 2017 के बाद से मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्टों में इस अहम कारण को नजरअंदाज किया जा रहा है।


2012 से 2024 तक के आंकड़े करते हैं खतरे की पुष्टि

यमुना एक्सप्रेसवे पर 2012 से 2023 तक हुए कुल हादसों में 44.2% दुर्घटनाएं और 39.3% मौतें नींद की वजह से हुईं।

आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे पर 2024 में हुई 1394 दुर्घटनाओं में से 811 मामलों में ड्राइवर को झपकी आना मुख्य कारण था।

सड़क परिवहन मंत्रालय की रिपोर्ट (2015 व 2016) में नींद से जुड़ी दुर्घटनाएं:

2015: 5,403 हादसे, 1,989 मौतें, 4,452 घायल

2016: 4,976 हादसे, 1,684 मौतें, 4,301 घायल

मंत्रालय को दिए गए सुझाव: सुरक्षा और सुधार के लिए विस्तृत उपाय

अधिवक्ता जैन की याचिका में केवल कारण को मान्यता देने की ही नहीं, बल्कि कई ठोस नीतिगत कदमों की भी सिफारिश की गई है:

नींद/थकान’ को दुर्घटना डेटा संग्रह फार्मेट में फिर से शामिल किया जाए।

ड्राइवर को 3 घंटे लगातार गाड़ी चलाने के बाद 15–20 मिनट का अनिवार्य ब्रेक और एक दिन में अधिकतम 8 घंटे ड्राइविंग की सीमा तय की जाए।

लाइसेंसिंग, प्रशिक्षण और मेडिकल फिटनेस में थकान मूल्यांकन’ को अनिवार्य किया जाए।

हर 50 किमी पर जागो सजग चलाओ सुरक्षित पहुंचाओ जैसे चेतावनी बोर्ड लगाए जाएं।

एक्सप्रेसवे के संभावित थकान खंडों में रंबल स्ट्रिप व स्पीड अरेस्टर विकसित किए जाएं।

नींद में मत चलाओ विषय पर टोल प्लाज़ा, एफएम रेडियो और डिजिटल डिस्प्ले के ज़रिए अभियान चलाया जाए।

चालक की नींद या थकान के कारण सड़क पर समाप्त होने वाला हर जीवन, एक पूर्णतः रोकी जा सकने वाली त्रासदी है। आंकड़े, अनुभव और तकनीकी साधन होने के बावजूद यदि हम इन मौतों को नहीं रोक पा रहे हैं, तो यह हमारी नीति की सबसे बड़ी विफलता है। नींद और थकान एक अदृश्य महामारी है ।यह न तो रिपोर्टों में दर्ज होती है, न ही संसद में बहस का विषय बनती है, लेकिन यह हर दिन सड़कों पर जान ले रही है।

केसी जैन, याचिका दाखिल करने वाले अधिवक्ता

विशेषज्ञों का मानना है कि नींद और थकान के कारण हुई दुर्घटनाएं अक्सर ‘मानव भूल’ के खाते में डाल दी जाती हैं, जबकि तकनीकी दृष्टि से इसे एक अलग श्रेणी में गिना जाना चाहिए, जिससे इसके लिए विशिष्ट समाधान निकाले जा सकें।

नीति में किया जाए बदलाव

भारत में सड़क दुर्घटनाएं हर साल हजारों जानें लेती हैं, जिनमें एक बड़ा हिस्सा सिर्फ इस वजह से होता है कि चालक नींद या थकान की अवस्था में वाहन चला रहे होते हैं। यदि सुप्रीम कोर्ट की सड़क सुरक्षा समिति इस याचिका पर विचार कर मंत्रालय से रिपोर्ट में बदलाव करवाती है, तो यह न सिर्फ नीति में बदलाव लाएगा, बल्कि जन-जागरूकता, इंफ्रास्ट्रक्चर और ड्राइविंग संस्कृति में भी बड़ा सुधार आ सकता है।

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