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श्रद्धा के समंदर में मचल उठीं भक्ति की लहरें, मुड़िया मेले में देशभर की संस्कृतियों ने किया गिरिराज जी को नमन
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गोवर्धन स्थित दानघाटी मन्दिर परिसर में जुटी श्रद्धालुओं की भीड़ |
चार जुलाई से आरंभ हुआ जगप्रसिद्ध मुड़िया पूर्णिमा मेला अब चरम पर है। जैसे-जैसे रविवार को एकादशी निकट आ रही है, श्रद्धा की बाढ़ और गहराती जा रही है। शनिवार की शाम से लेकर रात तक गोवर्धन धाम श्रद्धालुओं की आवाजाही से गुलजार रहा। भीषण गर्मी और रात का अंधकार भी भक्तों की आस्था को रोक नहीं सका।
हर ओर भक्ति, हर चेहरे पर मुस्कान
राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, बिहार और दिल्ली सहित पूरे देश से लाखों श्रद्धालु गिरिराज परिक्रमा में शामिल हो रहे हैं। रंग-बिरंगी वेशभूषा, विविध भाषाएं और अलग-अलग लोकसंस्कृतियों ने गोवर्धन को मानो एक विशाल सांस्कृतिक उत्सव में बदल दिया है।
यह आयोजन सिर्फ एक धार्मिक मेला नहीं, बल्कि राष्ट्र की सांस्कृतिक विविधता में एकता का जीवंत उदाहरण बन गया है।
यहां न पहचान की ज़रूरत है, न परिचय की। “राधे-राधे” के जयघोष, मुस्कराते चेहरे, और सहयोग से भरे मन सब कुछ खुद-ब-खुद कह जाते हैं।
मंदिरों में उमड़ा श्रद्धा का सैलाब
शनिवार को प्रातःकाल से ही दानघाटी, हर गोकुल, मुकुट मुखारविंद, जतीपुरा मुखारविंद जैसे पावन मंदिरों में भक्तों की कतारें लग गईं। भक्तों ने घंटों खड़े रहकर प्रभु के दुग्धाभिषेक का सौभाग्य प्राप्त किया। जब गिरिराज जी का अभिषेक प्रारंभ हुआ, तो दूध की धाराओं में जैसे भक्तों का प्रेम भी बहने लगा।
दोपहर में प्रसाद अर्पण कर प्रभु को विश्राम कराया गया और फिर जैसे ही श्रृंगार आरंभ हुआ, मंदिरों का वातावरण फिर से भक्तिरस से सराबोर हो उठा।
राजस्थान सीमा पर संगीत व भक्ति का संगम
गोवर्धन परिक्रमा के पूंछरी क्षेत्र (राजस्थान सीमा) में भक्ति का एक अलग ही रंग देखने को मिला। प्याऊ और भंडारों पर सांस्कृतिक प्रस्तुतियों ने श्रद्धालुओं को झूमने पर मजबूर कर दिया।
यहां प्याऊ और भंडारा संचालक अपने साथ नृत्य करने वाले महिला-पुरुष दल भी लाए हैं, जो भक्ति संगीत पर नृत्य कर लोगों की थकान मिटा रहे हैं। भजन, कीर्तन और ढोल-मंजीरों की गूंज से पूरा इलाका भक्तिमय बन गया है।
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गुरु पूर्णिमा पर अमृतमयी हुई ब्रजभूमि, साधना की परंपराओं ने किया सनातन संस्कृति को नमन
वृंदावन (मथुरा)।गुरु पूर्णिमा पर जब सूर्य की किरणें वृंदावन की पवित्र धूल को छू रही थीं, तब साधकों की आस्था और भक्ति से ब्रजभूमि अमृतमयी हो उठी। भगवान श्रीराधाकृष्ण की लीलाभूमि न केवल भक्ति की प्रेरणा है, बल्कि धर्म, साहित्य और संस्कृति का अद्वितीय केंद्र भी बन चुकी है।
यह वह भूमि है जहां स्वामी हरिदास, श्रीहित हरिवंश महाप्रभु, हरिराम व्यास, रूप गोस्वामी, सनातन गोस्वामी जैसे महापुरुषों ने अपने तप, साधना और ज्ञान से सनातन संस्कृति को सींचा। यहां गुरु-शिष्य परंपरा आज भी जीवंत है, और गुरु पूर्णिमा जैसे पावन पर्व पर गद्दी पर विराजमान आचार्यों की परंपरा का पूजन कर हजारों अनुयायी आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
हरिदासीय संप्रदाय: संगीत से प्रकट हुए ठाकुर बांकेबिहारी
स्वामी हरिदास, जिन्हें ललिता सखी का अवतार माना जाता है, विक्रम संवत 1535 में जन्मे और वृंदावन के निधिवन को अपनी साधना स्थली बनाया। उनकी दिव्य संगीत साधना से प्रसन्न होकर ठाकुर बांकेबिहारीजी निधिवन में प्रकट हुए।
स्वामी हरिदास के शिष्य तानसेन और बैजू बावरा जैसे संगीत सम्राट रहे हैं। अकबर भी उनकी संगीत साधना से इतना प्रभावित हुआ कि दिल्ली दरबार छोड़ वृंदावन पहुंचा।
आज भी टटिया स्थान, रसिकबिहारी मंदिर, गोरीलाल कुंज और स्वामी हरिदास रसोपासना केंद्र में हरिदासीय साधक साधना में लीन रहते हैं। निधिवन राज मंदिर में उनकी समाधि और परंपरा आज भी विद्यमान है।
निंबार्क संप्रदाय: सनातन परंपरा का जीवंत दर्शन
निंबार्क संप्रदाय को कुमार, हंस और सनकादि संप्रदाय के नाम से भी जाना जाता है। इसका मूल दर्शन द्वैत-अद्वैत पर आधारित है, जो सनकादि ऋषियों से होता हुआ निंबार्काचार्य तक पहुँचा।
वृंदावन में इस संप्रदाय के श्रीजी मंदिर की बड़ी कुंज और निंबार्क कोट जैसे केंद्र हैं। यह संप्रदाय राधा-कृष्ण की युगल उपासना को अपनी आत्मा मानता है और वैष्णव परंपरा के चार प्रमुख स्तंभों में एक है।
गौड़ीय संप्रदाय: चैतन्य महाप्रभु की लहर में बहता वृंदावन
चैतन्य महाप्रभु द्वारा स्थापित गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय वृंदावन को भगवान की लीलास्थली मानकर उसे भक्ति रस से सराबोर करता है। इस संप्रदाय में माना जाता है कि राधा-कृष्ण के साथ उनके भक्तगण आज भी वृंदावन में वास करते हैं।
इस संप्रदाय के प्रमुख केंद्र हैं:
राधारमण मंदिर,राधा दामोदर मंदिर,मदनमोहन मंदिर,गोपीनाथ मंदिर,गोविंददेव मंदिर,राधा श्यामसुंदर मंदिर
ये सभी स्थान आज भी भक्ति, साधना और रासलीला की अनुभूति कराते हैं।
रामानंदीय संप्रदाय: दक्षिण की परंपरा से उत्तर की धरती पर
रामानंदीय या रामानुज संप्रदाय ने भी वृंदावन को साधना का प्रमुख केंद्र बनाया। इस परंपरा के रंगदेशिक महाराज ने दक्षिण भारत की शैली में श्रीरंगनाथ मंदिर (रंगजी मंदिर) की स्थापना की।
सुदामा कुटी,आचार्य पीठ,मलूक पीठ,राधामाधव दिव्यदेश
ये सभी स्थल रामानुज दर्शन, भक्ति और वेदांत के केंद्र हैं।
राधावल्लभ संप्रदाय: राधा में ही सब कुछ
श्रीहित हरिवंश महाप्रभु द्वारा प्रवर्तित राधावल्लभ संप्रदाय में राधा जी की उपासना को सर्वोपरि माना गया है। युगल उपासना, निकुंज लीला, रास लीला और राधा माधव के विविध विहार इस संप्रदाय की विशेषता हैं।
मुख्य स्थल:
राधावल्लभ मंदिर,सेवाकुंज,बड़ा रास मंडल,वंशीवट,मान सरोवर,धीर समीर,शृंगारवट,विहारवन
यहां छवि पूजा की परंपरा अब भी शुद्धता के साथ निभाई जाती है।
गुरु पूर्णिमा पर अनुयायियों का अपार समागम
गुरु पूर्णिमा के अवसर पर वृंदावन में हर संप्रदाय के आश्रमों, मठों और मंदिरों में हजारों अनुयायी पहुंचे। उन्होंने अपने गुरुजनों की गद्दियों का पूजन, दीक्षा ग्रहण, और भक्ति-पथ पर अग्रसर होने का संकल्प लिया।
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प्रस्तावित गलियारा निर्माण योजना के विरोध में स्थानीय महिलाओं ने मंदिर परिसर में वाणी पाठ कर विरोध जताया |
"हेमा मालिनी जाएं मुंबई, हम तो किशोरी जी के पास रहेंगे" ठाकुर बांकेबिहारी गलियारा के विरोध में महिलाओं का वाणी पाठ
गलियारा नहीं, हमारी विरासत चाहिए — वाणी पाठ में छलका ब्रजवासी महिलाओं का दर्द
वृंदावन (मथुरा)।ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर न्यास और प्रस्तावित गलियारा निर्माण योजना के विरोध में स्थानीय महिलाओं का आक्रोश शनिवार को भक्ति और साधना के स्वर में गूंज उठा। मंदिर सेवायत परिवार और गलियारा प्रभावित क्षेत्र की महिलाओं ने मंदिर परिसर के चबूतरे पर एकत्र होकर स्वामी हरिदास की वाणी का सस्वर पाठ कर ठाकुरजी से विनती की।
महिलाओं ने कहा कि वे सांसद हेमा मालिनी के बयान से आहत हैं, जिसमें उन्होंने कहा था कि गलियारा का विरोध करने वाले कहीं और जाकर बस जाएं। इस पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए महिलाओं ने कहा —
“हेमा मालिनी को ही मुंबई लौटना होगा, हम तो ठाकुरजी की सेवा में वृंदावन में ही रहेंगे।"
भक्ति के माध्यम से विरोध, गलियारे पर नहीं चाहिए विकास की आड़
शनिवार दोपहर करीब साढ़े तीन बजे, ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर के चबूतरे पर सेवायत परिवार की दर्जनों महिलाएं एकत्रित हुईं। हरिदासीय संप्रदाय से जुड़ी साधिकाओं के साथ मिलकर स्वामी हरिदास की वाणी का पाठ, समाज गायन और प्रार्थना की गई।
महिलाओं ने कहा कि स्वामी हरिदास ने अपनी संगीत साधना से ठाकुर बांकेबिहारी जी को निधिवन में प्रकट किया था और आज भी वही साधना, वही स्वर ठाकुरजी को प्रसन्न कर सकते हैं।
तीन बार सांसद रहीं, फिर भी समस्याएं जस की तस
महिलाओं ने सांसद हेमा मालिनी पर सीधा आरोप लगाते हुए कहा कि उन्होंने तीन बार सांसद रहते हुए भी न यमुना को शुद्ध कराया, न बिजली व्यवस्था में सुधार किया और न ही बुनियादी समस्याओं का हल निकाला।
उन्होंने कहा:हम ब्रजवासी हैं, ठाकुर जी के सेवक हैं। हमें कहीं और नहीं जाना, किशोरी जी खुद हमें अपने पास रखेंगी। बाहर तो वही जाएंगी जिन्होंने कुछ नहीं किया।"
महिला सहभागिता: भक्ति भी, विरोध भी
वाणी पाठ में भाग लेने वाली प्रमुख महिलाओं में
राधा मिश्रा,रीना गोस्वामी,सरोज गोस्वामी,सीमा गोस्वामी,प्रीति गोस्वामी,कमलेश गोस्वामी,संध्या गोस्वामी,दीपशिखा गोस्वामी,नीलम गोस्वामीएवं ममता गोस्वामी उपस्थित रहीं।
नाराज़गी भरे स्वर में भक्ति की गूंज
यह विरोध केवल एक आंदोलन नहीं, बल्कि एक भावनात्मक भक्ति प्रदर्शन बन गया। महिलाओं का कहना है कि गलियारा निर्माण के नाम पर संस्कारों, संतों की साधना स्थली और ब्रज की मूल पहचान को खतरा है, जिसे ब्रजवासी कभी स्वीकार नहीं करेंगे।
क्या है विवाद
प्रशासन द्वारा प्रस्तावित ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर गलियारा योजना के तहत मंदिर क्षेत्र को विस्तार देने, सुविधाओं को बढ़ाने और भीड़ नियंत्रण के लिए बड़े पैमाने पर निर्माण प्रस्तावित है।
विरोध करने वालों का कहना है कि इससे:
- मूल स्वरूप नष्ट होगा
- संप्रदायिक परंपराएं टूटेंगी
- साधु-संतों, सेवायत परिवारों और श्रद्धालुओं को विस्थापन झेलना पड़ेगा
ब्रजवासियों का संदेश साफ़ है: "संस्कृति से समझौता नहीं"
वृंदावन की महिलाएं भले ही सत्ता से दूर हैं, लेकिन अपने स्वर, साधना और संकल्प से वे यह स्पष्ट कर रही हैं कि ठाकुर बांकेबिहारी की परंपरा से समझौता किसी कीमत पर मंजूर नहीं। हम यहां न वोट मांगने आए हैं, न राजनीति करने, हम ठाकुरजी के द्वार से जुड़े हैं और उन्हीं की शरण में हैं।”