आगरा। तहसील खेरागढ़ क्षेत्र के कुसियापुर और डूंगरवाला गाँव के पास ऊटंगन नदी में 2 अक्टूबर को मूर्ति विसर्जन के दौरान डूबे युवकों के शवों की तलाश और रेस्क्यू के लिए चलाया गया “ऑपरेशन उटंगन 124 घंटे की लगातार मेहनत के बाद मंगलवार की शाम 6ः10 बजे मृतक हरेश के शव के बरामद होने के साथ सफलतापूर्वक समाप्त हुआ।
एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, सेना की 411वीं पैराफील्ड कम्पनी, पीएसी, स्थानीय गोताखोर, पुलिस प्रशासन और आम जनता के अथक प्रयासों से यह ऑपरेशन साबित करता है कि समन्वय, साहस और जनसहयोग से बड़े से बड़े संकट को भी मात दी जा सकती है।
DM अरविंद मल्लप्पा बंगारी ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए बताया कि ऑपरेशन में एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, सेना की 411वीं पैराफील्ड कम्पनी, पीएसी, स्थानीय गोताखोर, पुलिस प्रशासन, मीडिया और क्षेत्रवासियों के निरंतर प्रयासों से यह सफलता मिली। उन्होंने सभी विभागों और जनता को धन्यवाद देते हुए कहा कि ऑपरेशन में शामिल सभी के प्रयास सराहनीय हैं।
उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ लगातार ऑपरेशन की प्रगति पर नजर बनाए हुए थे और मुख्यमंत्री कार्यालय द्वारा हर संभव मदद और सहयोग प्रदान किया गया। DM ने सभी के समर्पित प्रयासों को देखते हुए बताया कि ऑपरेशन में शामिल अधिकारियों, जवानों और आम जनता की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही।
गौरतलब है कि 2 अक्टूबर को हुई दुर्घटना में कुल 13 युवक नदी में डूब गए थे। तत्काल स्थानीय पुलिस और ग्रामीणों की सहायता से विष्णु नामक युवक को सुरक्षित बचा लिया गया और अस्पताल में उसका उपचार किया गया। वहीं ओमपाल, गगन और मनोज के शव बरामद हो चुके थे।
तुरंत ही एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और स्थानीय गोताखोरों की मदद से युद्ध स्तर पर रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू किया गया। ऑपरेशन के दौरान नदी के बहाव को डायवर्ट करने के लिए सिंचाई विभाग को शामिल किया गया और प्रशासन के अन्य विभागों ने भी सहयोग दिया।
3 अक्टूबर को भगवती और अभिषेक उर्फ भेला के शव बरामद किए गए। शेष सात व्यक्तियों की खोज के लिए ऑपरेशन को और प्रभावी बनाया गया। विशेष एनडीआरएफ टीम को बुलाकर काम में तेजी लायी गई। 5 अक्टूबर को करन पुत्र रनवीर सिंह का शव बरामद हुआ। 6 अक्टूबर को वीनेश और ओके के शव निकाले गए।
आज अंतिम प्रयासों में सचिन पुत्र रामवीर, दीपक पुत्र सुख्खन और गजेन्द पुत्र रेवती के शव भी निकाले गए। इसके साथ ही सायं 6ः10 बजे ऑपरेशन उटंगन का समापन हुआ और सभी शवों को सुरक्षित निकाल लिया गया।
DM अरविंद मल्लप्पा बंगारी ने बताया कि ऑपरेशन में शामिल सभी विभागों, जवानों और आम जनता के प्रयासों की अत्यधिक सराहना की जाती है। उन्होंने कहा कि इस कठिन परिस्थितियों में सभी ने मिलकर उच्च स्तर का समन्वय और साहसिक प्रयास किया।
उन्होंने यह भी कहा कि भविष्य में इस तरह की घटनाओं से बचाव और बचाव कार्य को और प्रभावी बनाने के लिए प्रशासन ने विशेष दिशा-निर्देश जारी किए हैं। साथ ही उन्होंने आम जनता से अपील की कि नदी या जलाशयों में किसी भी प्रकार के आयोजनों के दौरान सुरक्षा मानकों का पालन अवश्य करें।
इस अवसर पर DM ने पत्रकारों को बताया कि ऑपरेशन में शामिल सभी राहत और बचाव कर्मियों ने दिन-रात मेहनत की। एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीम ने विशेष उपकरण और तकनीकी सहायता प्रदान की। सेना की 411वीं पैराफील्ड कम्पनी ने सुरक्षा और रेस्क्यू में विशेष योगदान दिया।
स्थानीय गोताखोर और पुलिस प्रशासन ने भी हर संभव मदद प्रदान की। DM ने कहा कि आम जनता, मीडिया और स्थानीय नेताओं के सहयोग के बिना यह ऑपरेशन सफल नहीं हो पाता। उन्होंने समस्त सहयोगियों को धन्यवाद दिया।
इस घटना के दौरान हुई त्रासदी ने पूरे क्षेत्र को स्तब्ध कर दिया था। लेकिन ऑपरेशन में शामिल सभी एजेंसियों और जनता की तत्परता ने यह सुनिश्चित किया कि मृतकों के शवों को सुरक्षित और सम्मानपूर्वक बरामद किया जा सके।
जिला प्रशासन ने सभी मृतक परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त की है और कहा कि आवश्यक सहायता प्रदान की जा रही है। उन्होंने कहा कि मृतकों के परिवारों की हर संभव मदद प्रशासन द्वारा की जाएगी।उन्होंने बताया कि ऑपरेशन उटंगन के दौरान प्रत्येक चरण में जिला प्रशासन ने उच्च स्तर का समन्वय किया। मुख्यमंत्री कार्यालय द्वारा भी निरंतर अपडेट लिया जा रहा था और हर संभव मदद मुहैया कराई गई।
इस प्रकार ऑपरेशन उटंगन 7 दिन की लगातार और समन्वित प्रयासों के बाद सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। DM ने सभी दलों, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, सेना, पीएसी, पुलिस, मीडिया और आम जनता के सहयोग की सराहना करते हुए कहा कि यह सामूहिक प्रयास मानवता और समर्पण का जीवंत उदाहरण है।इस ऑपरेशन ने न केवल मृतकों के परिवारों को राहत दी, बल्कि पूरे जनपद में प्रशासन और नागरिकों के सहयोग की मिसाल कायम की। DM ने कहा कि भविष्य में ऐसी घटनाओं से निपटने के लिए और अधिक तैयारियां की जाएंगी और सुरक्षा उपायों को और सख्त किया जाएगा।
खेरागढ़ में ऊटंगन नदी हादसा: गांव में मातम, परिवारों की आंसू भरी इंतजार की कहानी
आगरा। खेरागढ़ तहसील के कुसियापुर गांव के पास ऊटंगन नदी में दुर्गा प्रतिमा विसर्जन के दौरान 2 अक्टूबर को हुई दुखद घटना में 13 लोग डूब गए थे। इनमें से चार लोगों के शव छठवें दिन मंगलवार को बरामद किए गए। आठ शव पहले ही नदी से निकाले जा चुके थे, जबकि एक युवक जिंदा बचा, जिसका इलाज अस्पताल में जारी है।
सेना, एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीम अभी भी उस युवक को तलाश रही है। डूबे क्षेत्र में पानी का बहाव रोकने के लिए ग्रामीणों ने 250 मीटर क्षेत्र में 40 मीटर लंबा अस्थायी बांध बनाया है। नदी की धारा को नाले की तरह मोड़ा गया है और पोकलेन व JCB से खुदाई का कार्य जारी है।
गांव की सन्नाटेदार तस्वीर
कुसियापुर गांव, जो आगरा से 45 किमी दूर और राजस्थान बॉर्डर से सिर्फ 500 मीटर पहले स्थित है, 2500 आबादी वाला छोटा सा गांव है। हादसे के बाद गांव में न तो बच्चों की हंसी सुनाई दे रही है और न ही गलियों में कोई आवाजाही। सन्नाटा पसरा है और गांव में केवल महिलाएं दिखाई दे रही हैं।
गांव के सभी पुरुष 6 दिन से ऊटंगन नदी के किनारे डूबे युवकों को बाहर निकालने के प्रयास में जुटे हुए हैं। जिन परिवारों के बेटे नदी में डूब गए, उनके घरों से केवल रोने की आवाजें आती हैं। रिश्तेदार और पड़ोसी गांवों के लोग पहुंचकर दुख बांट रहे हैं।
पड़ोसी गांव डुंगरपुर के लोग रिक्शों में खाना लेकर कुसियापुर गांव में आ रहे हैं। वे हर घर में बड़े भगोनों में पूड़ी और सब्जी रखकर जा रहे हैं। गांव वाले मना करने के बावजूद उन्हें रोक नहीं पा रहे हैं।
गांव के बीचोंबीच गजेंद्र का घर है, जो डूबे युवकों में शामिल था। उनकी मां विमलेश घर के अंदर बैठी हैं और गांव की महिलाएं उन्हें घेरे बैठी हैं। छह दिन से घर में मातम पसरा है। मां की आंखें सूज गई हैं, और बिना खाए-पीए वह रोती रही हैं। उनका एक ही अनुरोध है “कृपया मेरे लाल को मेरे सामने ला दो, मुझे उसे देखना है।”
सचिन का घर गजेंद्र के घर से कुछ कदम की दूरी पर है। सचिन का शव छठवें दिन बरामद हुआ। उसके घर के सभी पुरुष घटनास्थल पर ही डेरा डाले हैं। घर में उसकी मां और रिश्तेदारों का रो-रोकर बुरा हाल है। महिलाओं की स्थिति सबसे चिंताजनक है। दूर-दूर तक रोने की आवाजें सुनाई दे रही हैं।
गांव का पूरा माहौल शोक और दर्द में डूबा हुआ है। हर घर में मातम पसरा है, और परिवार अपने बच्चों के लौटने का इंतजार कर रहे हैं। यह त्रासदी केवल एक दुर्घटना नहीं, बल्कि गांव के हर परिवार की जिंदगी में गहरे दुख का निशान छोड़ गई है।
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