बृज खंडेलवाल, आगरा
___________________________
ज़रा जाड़े की उस सुबह की कल्पना कीजिए, धुंध इतनी गाढ़ी कि ताजमहल का सफ़ेद संगमरमर भी भूत-सा दिखने लगे। हवा में ऐसी सड़ांध कि साँस लेते ही सीने में जलन हो। और ठीक ताज के पीछ, यमुना नदी, जिसने कभी मुग़लों का इतिहास देखा, आज ज़हरीली झाग का उबलता कब्रिस्तान बन चुकी है। ऐसा लगता है मानो ताजमहल अपनी ही धीमी मौत का मातम मना रहा हो।
आगरा आज कोई साधारण शहर नहीं; यह उत्तर भारत के पर्यावरणीय पतन का जीता-जागता आईना है। नवंबर 2025 में आगरा का औसत AQI 350-450 के बीच रहा, कई दिन 500 पार पहुँचा। यमुना में ऑक्सीजन लेवल 0-2 mg/L तक गिर चुका है (न्यूनतम जरूरी 5 mg/L), BOD 40-80 mg/L और कोलीफॉर्म बैक्टीरिया लाखों MPN/100 ml में। यही पानी ताजमहल के पीछे सफ़ेद जहरीली झाग की चादर बनाता है।
दिल्ली-एनसीआर का गैस चैंबर
25-26 नवंबर 2025 को दिल्ली का AQI कई इलाकों में 480-550 तक पहुँचा (CPCB डेटा)। PM2.5 का स्तर WHO मानक से 30-40 गुना ज्यादा। पिछले 10 दिनों में दिल्ली-एनसीआर में अस्थमा के मरीजों में 40-50% इजाफा दर्ज हुआ (सफदरजंग, AIIMS, अपोलो अस्पताल डेटा)। स्कूल बंद, निर्माण कार्य रुके, लेकिन पराली जलाने का योगदान इस बार 30-35% तक पहुँचा (SAFAR अनुमान)। पंजाब में 2025 फसल सीजन में अब तक 8,000+ पराली जलाने की घटनाएँ दर्ज (Punjab Pollution Control Board)।
यमुना: खुला नाला बन चुकी नदी
दिल्ली से आगरा पहुँचते-पहुँचते यमुना में 80% पानी सीवेज और औद्योगिक अपशिष्ट होता है। दिल्ली रोज 3,800 MLD सीवेज पैदा करती है, जिसमें से केवल 2,200 MLD की ट्रीटमेंट क्षमता है (CPCB 2025 रिपोर्ट)। 35% सीवेज अनट्रीटेड नदी में जाता है। आगरा में 22 में से सिर्फ 9 STP कार्यरत हैं, बाकी या तो बंद या आंशिक रूप से चालू। नमामि गंगे के तहत यमुना के लिए 2014 से अब तक ₹8,500 करोड़ से ज्यादा खर्च, लेकिन 2025 में भी यमुना दिल्ली से आगरा तक “क्लास E” (केवल सिंचाई योग्य) ही बनी हुई है।
कानूनी लड़ाई और अदालती नरमी
1996 में सुप्रीम कोर्ट ने ताज ट्रेपेजियम जोन (TTZ) में 292 प्रदूषणकारी उद्योग बंद करने का आदेश दिया था। 2015-2023 के बीच कई उद्योगों को “अस्थायी अनुमति” मिली, जो अब स्थायी हो गईं। NGT ने 2023-24 में आगरा-मथुरा क्षेत्र में 500+ अवैध इकाइयों पर जुर्माना लगाया, लेकिन 70% से ज्यादा अभी भी चल रही हैं।
रेत माफिया: 2025 में यमुना घाटी से 1.5 लाख टन से ज्यादा अवैध रेत खनन के मामले दर्ज (UP पुलिस डेटा)।
सिस्टम की सच्चाई
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास स्टाफ की 50% से ज्यादा कमी। कई ईमानदार अधिकारियों का ट्रांसफर (उदाहरण: 2024 में आगरा के दो क्षेत्रीय अधिकारी ट्रांसफर)। हर साल GRAP (Graded Response Action Plan) लागू होता है, लेकिन Stage-3/4 के नियमों का उल्लंघन खुले आम। डीजल जनरेटर, पुरानी गाड़ियाँ, निर्माण धूल, सब चलता रहता है।
यह संकट अचानक नहीं आया।
1985 में ताज का पीला पड़ना शुरू हुआ था। 1993 में ताज ट्रेपेजियम जोन बना। 2014 में नमामि गंगे शुरू हुई। 2017 में GRAP लागू हुआ।
फिर भी 2025 में भी हम वहीं खड़े हैं, बल्कि और पीछे।ताजमहल, जिसे इंसान ने प्यार की निशानी बनाया था, आज उसी इंसान के लालच और लापरवाही से घुट रहा है। यह सिर्फ एक स्मारक का संकट नहीं; यह आने वाली पीढ़ियों की साँसों का संकट है। यमुना सिर्फ नदी नहीं, उत्तर भारत के पर्यावरणीय स्वास्थ्य की धड़कन है। और यह धड़कन अब रुकने की कगार पर है।
अगर सरकार बहाने छोड़कर वास्तविक कदम उठाए, सख्त नियम, कड़ाई से अमल, भ्रष्टाचार पर लगाम, प्रदूषण करने वालों पर बिना राजनीतिक दबाव के कार्रवाई, और अदालतें अपने संवैधानिक दायित्व को याद रखें, तभी कुछ उम्मीद बचेगी।वरना ताजमहल की यह धीमी मौत, एक दिन पूरे उत्तर भारत की मौत का आईना बन जाएगी।
#TajMahal #YamunaPollution #DelhiSmog #AgraNews #EnvironmentalCrisis #AirPollutionIndia #ToxicRiver #NorthIndiaAirCrisis #SaveYamuna #ClimateEmergency #AQI500 #EnvironmentalReport
