Agra News 'Kala Samvad' program in Sanskriti Bhavan: Poets and painters clash in 'Kala and Kalam'

टूडे न्यूजट्रैक। उत्तर प्रदेश। हिन्दी समाचार। यूपी न्यूजट्रैकटूडे
कला संवाद’ में सजी सुरों की छांव, रंगों-कविताओं का बहा भाव

‘चित्रांजलि’ के समापन के मौके पर चित्रकार, साहित्यकार, व कलाप्रेमी

 आगरा:ललित कला संस्थान के 25 वें स्थापना वर्ष के अंतर्गत आयोजित कार्यक्रमों की श्रृंखला में मंगलवार को संस्कृति भवन स्थित आर्ट गैलरी में प्रो. (डॉ.) चित्रलेखा सिंह की एकल चित्रकला प्रदर्शनी ‘चित्रांजलि’ का समापन किया गया। इसी अवसर पर ‘कला संवाद’ कार्यक्रम का आयोजन भी हुआ, जिसमें आगरा के चित्रकारों, साहित्यकारों, कला समीक्षकों एवं कलाप्रेमियों ने भाग लिया।

समारोह का शुभारंभ मुख्य अतिथि डॉ. रंजना बंसल द्वारा दीप प्रज्ज्वलन कर किया गया। उन्होंने प्रो. चित्रलेखा सिंह की अंतिम पेंटिंग उतार कर प्रदर्शनी का समापन किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्थान के निदेशक प्रो. संजय चौधरी तथा संस्थान की पूर्व निदेशक डॉ. सरोज भार्गव ने संयुक्त रूप से की।

इस अवसर पर संस्थान की संस्थापक निदेशक प्रो. (डॉ.) चित्रलेखा सिंह ने कहा कि—

“संस्थान कलाकारों को गढ़ने का मेरा सपना था, जो आज देश-विदेश में ख्यातिलब्ध कलाकारों की एक सशक्त पीढ़ी के रूप में साकार हो चुका है।”वर्तमान निदेशक प्रो. संजय चौधरी ने कहा “कला भावनाओं की अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है। रजत जयंती वर्ष के अंतर्गत संस्थान वर्षभर विविध कलात्मक कार्यक्रम आयोजित करेगा।”पूर्व निदेशक डॉ. सरोज भार्गव ने कहा कला आत्मिक तृप्ति का माध्यम है, और सृजन से प्राप्त संतोष अतुलनीय होता है।”

‘कला और कलम’ में गूंजीं रचनात्मक आवाज़ें

कला संवाद कार्यक्रम के अन्तर्गत ‘कला और कलम’ सत्र में शहर के कवियों और चित्रकारों ने काव्य और चित्रों के माध्यम से कला के विविध पक्षों को उजागर किया। प्रो. चित्रलेखा सिंह, चित्रकार अशोक कुमार सिंह, ललित कला अकादमी की सदस्य डॉ. आभा, संस्थान के डिप्टी डायरेक्टर मनोज कुमार सिंह सहित अन्य प्रतिभागियों ने कविताएं प्रस्तुत कीं।

प्रो. चित्रलेखा सिंह की पंक्तियाँ थीं—

“निमंत्रण देती आंखें, क्या कहना चाहती हैं...

इन उंगलियों के पोरों का, कौन सा तरंग देकर छिप जायेगी!”

चित्रकार अशोक कुमार सिंह ने सुनाया—

“जहां सबेरे का मतलब उदासी हो...

ग़मख़ाने में ढली ज़िंदगी कराह रही है!”

डॉ. आभा की कविता थी—

“शब्दों का आकार लेना आसान नहीं होता...

भाव अंतस में ज्वालामुखी की तरह पिघलते हैं।”

मनोज कुमार सिंह ने भावपूर्ण पंक्तियों में कहा—

“कल सुबह के दामन में हम होंगे न तुम होंगे,

इस कलादीर्घा में हमारे कुछ नक्शे-कदम होंगे!”

अनेक कलाप्रेमी रहे उपस्थित

कार्यक्रम में डॉ. साधना सिंह, डॉ. नीलम कांत, डॉ. त्रिलोक कुमार शर्मा, कमलेश चंद्र जैन, भूमिका तिवारी, डॉ. तपस्या सिंह, रेशमा बेदी, डॉ. राजेश सैनी, गणेश कुशवाह आदि विशिष्ट जन उपस्थित रहे। संचालन नंद नंदन गर्ग ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन शीला बहल ने प्रस्तुत किया। 


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