व्यवस्था पर सवाल, समस्याएं जस की तस
आगरा। प्रदेश के उप मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा मंत्री ब्रजेश पाठक शुक्रवार को आगरा पहुंचे। खेरिया एयरपोर्ट पर भाजपा नेताओं और जनप्रतिनिधियों ने उनका भव्य स्वागत किया। गुलदस्ते और माल्यार्पण के बीच जब वे जिला अस्पताल पहुंचे तो उम्मीद थी कि मरीजों को राहत मिलेगी और अस्पताल की दशा सुधरेगी। लेकिन निरीक्षण एक औपचारिकता भर बनकर रह गया।
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| जिला अस्पताल में निरीक्षण के दौरान मरीज से इलाज के बारे में जानकारी लेते डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक |
डिप्टी सीएम का हकीकत से हुआ सामना
अस्पताल पहुंचते ही उप मुख्यमंत्री सीधे ओपीडी और विभिन्न वार्डों में गए। उन्होंने मरीजों और तीमारदारों से इलाज, दवाओं और खाने के बारे में पूछताछ की। मरीजों ने कहा कि डॉक्टर और नर्स समय से इलाज करते हैं, खाना समय से मिलता है और दवाएं अस्पताल से उपलब्ध कराई जाती हैं। सुनने में सब व्यवस्थित लग रहा था, लेकिन हकीकत इससे कहीं गहरी है। निरीक्षण के दौरान अस्पताल की रंगाई-पुताई, साफ-सफाई और स्क्रैप का ढेर देखकर नाराजगी जताई गई। इमरजेंसी वार्ड से लेकर महिला और बच्चों के वार्ड तक गंदगी और अव्यवस्था साफ दिख रही थी। छतों पर वर्षों से पड़े कबाड़, खड़े खराब वाहन और बदबू मारते कोने किसी भी बड़े अस्पताल की गरिमा को ध्वस्त कर रहे थे।
बताएं मरीजों को सुविधाएं क्यों नहीं मिल रहीं
अस्पताल का दौरा करने के बाद स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के साथ समीक्षा बैठक हुई। यहां उप मुख्यमंत्री ने सीएमएस से जवाब तलब किया। आरोप लगा कि रोगी कल्याण समिति के खाते में पर्याप्त पैसा होने के बावजूद अस्पताल की दशा नहीं सुधरी। सफाई, मरम्मत, फर्श और दीवारों की रंगाई पर खर्च न होने से स्थिति और बिगड़ती गई। सवाल उठे कि जब पैसा है तो मरीजों को बेहतर सुविधा क्यों नहीं मिल रही।बैठक में साफ कहा गया कि सभी जांचें अस्पताल के भीतर ही हों। खराब पड़ी मशीनों को दुरुस्त करने के निर्देश दिए गए। लेकिन यह पहला मौका नहीं है जब ऐसे निर्देश दिए गए हों। हर निरीक्षण में यही बातें उठती हैं और हर बार इन्हीं वादों पर फाइलें बंद हो जाती हैं।
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| जनप्रतिनिधियों के साथ मीटिंग करते डिप्टी सीएम |
बाहर की दवाओं पर रोक, फिर भी खरींदी जा रहीं
निरीक्षण के दौरान यह दावा किया गया कि प्रदेश में दवाओं की कोई कमी नहीं है। लेकिन हकीकत यह है कि आए दिन मरीजों को बाहर से दवाएं खरीदनी पड़ती हैं। उप मुख्यमंत्री ने निर्देश दिए कि बाहर की दवा लिखने वाले डॉक्टरों पर कड़ी कार्रवाई हो। सवाल यह है कि अगर वाकई दवाएं उपलब्ध हैं तो फिर मरीज मेडिकल स्टोर का चक्कर क्यों लगाते हैं।
गुलदस्ते के स्वागत में दब गईं अव्यवस्थाएं
निर्देश दिए गए कि अस्पताल के प्रवेश द्वार पर दो कर्मचारी मरीजों और तीमारदारों की मदद के लिए तैनात किए जाएं। लेकिन यह व्यवस्था भी कितने दिन चलेगी, यह बड़ा सवाल है। पहले भी ऐसी घोषणाएं हो चुकी हैं और कुछ ही हफ्तों में सब पुराने ढर्रे पर लौट जाता है।निरीक्षण के बीच उप मुख्यमंत्री ने घोषणा की कि 17 सितंबर से 2 अक्टूबर तक सेवा पर्व के तहत प्रदेश भर में स्वास्थ्य कैंप और आरोग्य मेले लगाए जाएंगे। खासतौर पर महिलाओं के स्वास्थ्य पर फोकस किया जाएगा। इसमें ब्लड प्रेशर, मधुमेह, कैंसर और एनीमिया जैसी बीमारियों की जांच होगी।लेकिन सवाल यह है कि जब जिला अस्पताल जैसे बड़े केंद्रों की हालत यह है, तो स्वास्थ्य शिविरों का लाभ आम जनता तक किस स्तर तक पहुंचेगा। कैंप खत्म होते ही सब पुराने ढर्रे पर लौट आता है।
निरीक्षण केवल रस्म अदायगी
निरीक्षण के दौरान डॉक्टरों और अधिकारियों की भारी भीड़ दिखी। कागजी रिपोर्टें और जवाब तैयार थे। लेकिन अस्पताल के गलियारों में बदबू, दीवारों पर पड़ी पपड़ी, टूटी खिड़कियां और गंदगी भरी नालियां अपनी कहानी खुद कह रही थीं। मरीजों की भीड़ और कम स्टाफ की स्थिति हर दिन की तरह जस की तस बनी रही।निरीक्षण और घोषणाओं के बाद भी यह सवाल कायम है कि क्या वाकई व्यवस्थाएं सुधरेंगी या फिर सब कुछ कुछ दिनों में सामान्य हो जाएगा। मरीज और उनके परिजन आज भी उम्मीद लगाए बैठे हैं कि जिला अस्पताल की हालत बदलेगी। लेकिन अब तक के अनुभव बताते हैं कि ऐसे निरीक्षण अक्सर औपचारिकता बनकर रह जाते हैं।
ये रहे मौजूद
निरीक्षण में जिलाधिकारी अरविंद मल्लप्पा बंगारी, सीडीओ प्रतिभा सिंह, सीएमओ अरुण कुमार श्रीवास्तव, एसएन मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल प्रशांत गुप्ता, सीएमएस राजेंद्र कुमार सहित तमाम डॉक्टर और अधिकारी मौजूद रहे।
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