आगरा। सड़क दुर्घटना में घायल पीड़ितों के लिए कैशलेस उपचार की मांग सर्वोच्च न्यायालय में उठी। हेमंत जैन द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई माननीय न्यायमूर्ति J.B. Pardiwala और न्यायमूर्ति K.V. Viswanathan की खंडपीठ के समक्ष हुई। अदालत ने सड़क दुर्घटना पीड़ितों के लिए निर्धारित 1,50,000 रुपये की सीमा और 7 दिन की उपचार सीमा पर आश्चर्य व्यक्त किया और गंभीर प्रश्न उठाया कि दुर्घटनाओं की गंभीरता को देखते हुए ऐसी कैपिंग कैसे व्यवहारिक हो सकती है।
सुनवाई में अधिवक्ता K.C. Jain ने तर्क रखा कि मोटर वाहन अधिनियम की धारा 162 बीमा कंपनियों को दुर्घटना पीड़ितों को तत्काल चिकित्सा सुविधा प्रदान करने के लिए बाध्य करती है और यह सुविधा बिना किसी वित्तीय सीमा के होनी चाहिए। धारा 147 के अनुसार बीमा कंपनी की उपचार संबंधी देयता अनलिमिटेड है और किसी भी प्रकार की सीमा का प्रावधान नहीं है।
अदालत में चर्चा हुई कि देश में 60 प्रतिशत सड़क दुर्घटनाएं ऐसे वाहनों से होती हैं जिनके पास थर्ड-पार्टी बीमा कवरेज है। इस स्थिति में सवाल उठता है कि बीमा कंपनियों की कानूनी जिम्मेदारी होने के बावजूद घायल व्यक्ति को तुरंत कैशलेस इलाज क्यों नहीं मिल रहा है, ठीक वैसे जैसे सामान्य मेडिकल इंश्योरेंस में मिलता है।
यदि सर्वोच्च न्यायालय इस याचिका को स्वीकार कर बीमा कंपनियों से कैशलेस, बिना सीमा चिकित्सा सुविधा देने का निर्देश जारी करता है, तो इससे हर वर्ष सड़क दुर्घटनाओं में घायल होने वाले लगभग 3 लाख लोगों को प्रत्यक्ष लाभ मिलेगा।
मामले की अगली सुनवाई 20 नवंबर को होगी।
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