आगरा। समाजसेवा का जीता-जागता पर्याय और “जलसेवक” के नाम से मशहूर बांकेलाल माहेश्वरी (आयु 88) अब हमारे बीच नहीं रहे। परंतु जाते-जाते भी उन्होंने सेवा की ऐसी मिसाल छोड़ी, जिसे आगरा कभी नहीं भुला पाएगा। परिवार ने उनका नेत्रदान कराया, जिससे दो जरूरतमंदों की जिंदगी में उजाला पहुंचेगा। यह क्षण आगरा शहर के लिए भावुक करने वाला और प्रेरणा देने वाला बन गया
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बांकेलाल माहेश्वरी |
अंतिम क्षणों तक सेवा का संकल्प
बांकेलाल माहेश्वरी के पुत्र संजय माहेश्वरी ने उनके निधन के बाद भी सेवा की परंपरा को जीवित रखा। उन्होंने आगरा विकास मंच के अध्यक्ष राजकुमार जैन से संपर्क कर नेत्रदान की इच्छा व्यक्त की। तत्पश्चात एस.एन. मेडिकल कॉलेज की नेत्र विभाग टीम ने कॉर्निया प्राप्त किए, जो अब दो लोगों की अंधकारमयी जिंदगी में उजाला भरेंगे। सचमुच, बांकेलाल माहेश्वरी ने जाते-जाते भी समाज की सेवा की लौ जलाए रखी।
समाजसेवा के लिए अपूरणीय क्षति
आगरा विकास मंच के अध्यक्ष राजकुमार जैन और संयोजक सुनील कुमार जैन ने भावुक होकर कहा कि बांकेलाल माहेश्वरी का निधन शहर के लिए अपूरणीय क्षति है। वे जीवन भर जलपान सेवा के माध्यम से “जलसेवक” कहलाए और लाखों प्यासों की प्यास बुझाई। उन्होंने कहा बांकेलाल माहेश्वरी का जीवन हमें सिखाता है कि असली संपदा धन नहीं, बल्कि सेवा और करुणा है। उन्होंने पानी से तृप्ति दी और नेत्रदान से अंधकार मिटाया। वे भले ही देह से विदा हो गए हों, लेकिन उनकी सेवा-परंपरा सदैव प्रकाश देती रहेगी।
परिवार की विरासत और संकल्प
उनके दो पुत्र प्रकाश चंद्र माहेश्वरी और संजू (संजय) माहेश्वरी ने पिता की सेवा परंपरा को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया है। उनके निधन से शहर में गहरा शोक है और हर कोई यही कह रहा है कि बांकेलाल माहेश्वरी केवल व्यक्ति नहीं, बल्कि सेवा की एक विचारधारा थे।
नेत्रदान अभियान से जुड़ने की अपील
बांकेलाल माहेश्वरी के निधन के बाद समाजसेवियों और चिकित्सकों ने शहरवासियों से नेत्रदान से जुड़ने की अपील की। संयोजक सुनील कुमार जैन, संदेश जैन (प्रवक्ता), राजीव अग्रवाल (महामंत्री, क्षेत्र बजाजा कमेटी), सुशील जैन, डॉ. सुनील शर्मा, डॉ. ज्ञान प्रकाश, डॉ. बी.के. अग्रवाल, डॉ. रमेश धमीजा और डॉ. अरुण जैन ने कहा कि “यदि हर कोई नेत्रदान के संकल्प से जुड़े, तो बांकेलाल माहेश्वरी की रोशनी अनगिनत आँखों तक पहुँचती रहेगी। बांकेलाल माहेश्वरी का जीवन हमें यह संदेश देकर गया है कि सेवा ही सबसे बड़ी साधना है, और इंसान की असली पहचान उसके द्वारा समाज के लिए किए गए कार्यों में बसती है।
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